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POPULAR FAIRS OF UTTARAKHAND || GK IN HINDI

By Kamakshi Sharma | General knowledge | Oct 09, 2018

नंदा देवी मेला



हिमालय की पुत्री Nanda Devi की पूजा-अर्चना के लिए प्रतिवर्ष भाद्र शुक्ल पक्ष की पंचमी से state के कई क्षेत्रों मेंNanda Devi  के मेले शुरू होते है।Almora के Nanda Devi Parishad में इस दिन बहुत बड़ा मेला लगता है। पंचमी के दिन Kelakham पर Nanda-Sunanda की Statue तैयार की जाती है, और अष्टमी के दिन Statue की पूजा-अर्चना होती है।

श्रावणी मेला



Almora के Jageshwar Dham में प्रतिवर्ष श्रावण में एक माहतक श्रावणी मेला लगता हैI 12-13वीं शताब्दी में निर्मित Jageshwar temple में इस अवसर पर महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए रात भर घी के दीपक हाथ में लिए पूजा-अर्चना करती है और मनोकामनाएं हेतु आशीर्वाद मांगती है। इस दौरान ढोल-नगाड़े वह हुड़की की मधुर थाप पर ग्रामीणों का जन-समूह नाचते-गाते वहां पहुंचता है तथा लोक कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करते है।

सोमनाथ मेला



Almora के Ranikhet के पास Ramganga नदी के तट पर स्थित Pali-Pachhau क्षेत्र मासी में बैशाख महीने के अंतिम रविवार से सोमनाथ का मेला शुरु होता है। पहले दिन के रात्रि में Saltiya Mela तथा दूसरे दिन ठुल कौतिक लगता है। जिसमे पशुओं का क्रय-विक्रय अधिक होता है। ठुल कौतिक के बाद नान कौतिक व उसके अगले दिन बाजार लगता है। इस में दूर-दूर के गायक कलाकार भी भाग लेते है। इस मौके पर Jhode , Chapeli , Bair, Chanchri व Bhagaul आदि नृत्य होते है।

गणनाथ मेला



Almora district के Gannaath (Taluka) में प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा को गणनाथ मेला लगता है। मान्यता है की रात-भर हाथ में दीपक लेकर पूजा करने से निसंतान दंपत्ति को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।

स्याल्दे-बिखौती मेला



अल्मोड़ा Dwarahad (Almora) में वैशाख माह के पहले दिन बिखौती मेला लगता है, व पहली रात्रि को स्याल्दे मेला कहते है। इस मेले का आरंभ कत्यूरी (Katyuri) शासन काल से माना जाता है। इस मेले में लोकनृत्य तथा गीत विशेषकर झोड़ा व भगनौल गाये जाते है।

श्री पूर्णागिरी मेला



Champawat के टनकपुर Tanakpur के पास Annapurna Peak पर स्थित श्री पूर्णागिरी मंदिर में प्रत्येक वर्ष चैत्र व आश्विन की नवरात्रियों में मेला लगते है। श्री पूर्णागिरी देवी की गणना देवी भगवती जी के 108 सिद्धपीठ में की जाती है।

बग्वाल मेला



Champawat जिले के Devidhura नामक स्थल पर मां वाराहीदेवी मंदिर के प्रांगण में प्रतिवर्ष रक्षा बंधन (श्रावणी पूर्णिमा) के दिन बग्वाल मेले का आयोजन किया जाता है। स्थानीय बोली में इसे Aasadi Kautik भी कहा जाता है। इस मेले की मुख्य विशेषता लोगों द्वारा एक दूसरों पर पत्थरों की वर्षा करना है। जिसमें Chanyat , Valik ,  Gahdwal व Lamgadiya चार खामों Khamon के लोग भाग लेते हैं। बग्वाल खेलने वालों को द्योके कहा जाता है।

 लड़ी धूरा मेला



यह मेला Champawat के Barakot Padma के देवी मंदिर (Devi Temple) में लगता है। मेले का आयोजन कार्तिक पूर्णिमा के दिन होता है। इसमें स्थानी लोग  Barakot तथा Kaakad Ganv में धुनी बनाकर रात-भर गाते हुए देवता की पूजा करते है। दूसरे दिन देवताओं को रथ में बैठाया जाता है। भक्तजन मंदिर की परिक्रमा कर पूजा करते हैं।

मानेश्वर मेला



चंपावत के मायावती आश्रम (Mayawati Aashrm) के पास मानेश्वर नामक चमत्कारी शिला के समीप इस मेले का आयोजन होता है। इस पत्थर के पूजन से पशु, विशेषकर दुधारु पशु स्वस्थ रहते है।

थल मेला



Pithoragarh  के बालेश्वर थल मंदिर Baleshwar Thal Temple में प्रतिवर्ष बैशाखीको यह मेला लगता है। 13 अप्रैल (April), 1940 को यहां बैशाखी के अवसर पर जलियांवाला दिवस  मनाए जाने के बाद इस मेले की शुरुआत हुई। छठे दशक तक यह मेला लगभग 20 दिन तक चलता था, लेकिन आज यह मेला कुछ ही दिनों में समाप्त हो जाता है।

जौलजीवी मेला



पिथौरागढ़ (Pithoragarh) के जौलजीवी (काली एवं गोरी नदी के संगम) पर प्रतिवर्ष कार्तिक माह (14, नवंबर (November)) में जौलजीवी मेला लगता है। इस मेले की शुरुआत सर्वप्रथम 1914 में मार्गशीर्ष संक्रांति को हुई थी। इस मेले में Jauhar , Darma , Vyas आदि जनजाति  बहुल क्षेत्रों के लोग ऊनी उत्पादन दन, चुटके, पंखिया, कालीन, पश्मीने लेकर पहुंचते हैं।

चैती मेला



Udham Singh Nagar के Kashipur के पास स्थित कुंडेश्वरी देवी के मंदिर में प्रतिवर्ष चैती का मेला लगता है, यह 10 दिन तक चलता है। देवी बाल सुंदरी को कुमाऊं के Chandvanshiy राजाओं की कुलदेवी मानी जाती है।

माघ मेला



Uttarkashi नगर में प्रतिवर्ष माघ के महीने में माघ मेला बहुत ही धूम-धाम से मनाया जाता है। यह मेला 1 सप्ताह तक चलता है। इस अवधि में ग्रामीवासी अपने देवी-देवताओं की डोली उठाकर यहां लाते है तथा गंगा स्नान कराते हैं। सरकारी प्रयासों से मेले में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है।

बिस्सू मेला



यह मेला प्रतिवर्ष Uttarkashi के Bhatanu , Tikochi , Kiroli, Maijni, आदि गांवों द्वारा सामूहिक रुप से मनाया जाता है।  विषुवत संक्रांति के दिन लगने के कारण यह मेरा बिस्सू मेला कहा जाता है। यह मेला धनुष-बाणों की रोमांचकारी युद्ध के लिए प्रसिद्ध है। Dehradun के Chakrata तहसील के जौनसार-Jaunsar-Babar व Askot-Bangan क्षेत्रों में बिस्सू मेला हर्षोल्लास से मनाया जाता है।

गिन्दी मेला



यह मेला पौड़ी गढ़वाल के Dadamandi में प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के अवसर पर भटपुण्डी देवी के मंदिर पर लगता है।

बैकुंठ चतुर्दर्शी मेला



यह मेला पौड़ी जिले के Kamleshwar Mandir पर बैकुंठ चतुर्दशी को प्रतिवर्ष लगता है। इस दिन Shringar Market को दुल्हन की तरह सजाया जाता है। कमलेश्वर मंदिर में पति-पत्नी रातभर हाथ में घी के दीपक थामे संतान प्राप्ति हेतु पूजा अर्चना करते है और मनोकामना पूर्ण होने का आशीर्वाद प्राप्त करते है।

दनगल मेला



यह मेला पौड़ी के सतपुली के पास दनगल के शिव मंदिर में प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि को लगता है। श्रद्धालुजन इस दिन उपवास रखकर पूजा-अर्चना करते है।

चंद्रबदनी मेला



यह मेला प्रतिवर्ष April में Tehri के Chandrbadni Temple में लगता है। यह मंदिर गढ़वाल के प्रसिद्ध 4 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।

रण भुत कौथीग



Tehri Garhwal के नैलचामी पट्टी (Nailchami Patti) के Thela Village में प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह में लगने वाला यह मेला राजशाही के समय विभिन्न युद्धों में मारे गये लोगों की याद में Bhut-Dance के रूप में होता है।

विकास मेला



Tehri Garhwal में प्रतिवर्ष विकास मेला का आयोजन होता है। इसे Development Exhibition के नाम से भी जाना जाता है।

हरियाली पुड़ा मेला



Karnpryag Chamoli में Nauti Village में चैत्र मास के पहले दिन हरियाली पुड़ा मेला लगता है। Nauti Village के लोग नंदादेवी को धियाण (विवाहित लड़कियां) मानते हुए उनकी पूजा-अर्चना करते है। इस अवसर पर धियाणिया अपने मायके जाती है और घर परिवार के सदस्यों को उपहार देते है। इस मेले के दूसरे दिन यज्ञ होता है, जिसमें श्रद्धालुजन उपवास रखते है और देवी की मनोकामना करते है

गोचर मेला



Chamoli जिले के ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक केंद्र गोचर में लगने वाला यह Industrial and Development Fair, 1943 में गढ़वाल के तत्कालिक Deputy Commissioner Bernedi ने शुरु किया था। उस समय इस मेले का उद्देश्य सीमांत क्षेत्रवासियों को क्रय-विक्रय का एक मंच उपलब्ध कराना था। वर्तमान में Pandit Jawaharlal Nehru के जन्मदिन पर शुरू होने वाले इस ऐतिहासिक मेले में उत्तराखंड के विकास से जुड़ी विभिन्न संस्कृतियां का खुल कर प्रदर्शन किया जाता है। साथ ही कृषि, बागवानी, रेशम कीट पालन, हथकरघा उद्योग, नवीन वैज्ञानिक तकनीक, महिला उत्थान योजना, ऊनी वस्त्र उद्योग एवं गढ़वाल मंडल विकास निगम द्वारा उत्पादित विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का प्रदर्शन होता है।

नुणाई मेला



यह मेला Dehradun के Jaunsar क्षेत्र में श्रावण माह में लगता है। इसे जंगलों में भेड़ बकरियों को पालने वालों के नाम से जाना जाता है। भेड़ बकरियों के चराने वाले रात्री-विश्राम जंगल में बनी गुफाओं में करते हुए पूरा साल जंगलों में बिताते है। जैसे ही इस महीने का समय होता है वे गांव की और आने लगते है।

टपकेश्वर मेला



Dehradun की Devdhara River के किनारे एक गुफा में स्थित इस शिव मंदिर की मान्यता दूर-दूर तक है। मंदिर में स्थित शिवलिंग पर स्वत: ही ऊपर से पानी टपकता रहता है।  शिवरात्रि पर यहाँ विशाल मेला लगता है।

झंडा मेला



यह मेला Dehradun में प्रतिवर्ष चैत्र कृष्ण की पंचमी से शुरु होता है। यह दिन Guru Ram Ray के जन्म दिन होने के साथ ही उनके देहरादून आगमन का दिन भी है। सन 1676 में इसी दिन उनकी प्रतिष्ठा में एक बड़ा उत्सव मनाया जाता था। इस दिवस के कुछ दिन पूर्व पंजाब से भी गुरु राम राय जी के भक्तों का बड़ा समूह पैदल चलकर देहरादून आता है। इस भक्त समूह को Sangat कहते है। दरबार से गुरु राम राय के गद्दी के श्री महंत आमंत्रण देने और उनका स्वागत करके एकादशी को यमुना तट पर 45 किलोमीटर दूर  Raiyanvala जाते है। ध्वजदंड भी दरबार साहिब से ही भेजा जाता है। उन्हें प्रेम और आदर के साथ देहरादून लाया जाता है।

इस मेले में विदेशी भी अनेक भक्त आते है। श्री महंत अपनी सुंदर और गौरवशाली पोशाक पहनकर जुलूस करते हुए शहर की परिक्रमा करते है। जिसमें हजारों की संख्या में भक्त होते है और झण्डे जी की पूजा होती है।

कुंभ मेला



यह मेला Haridwar में गंगा के तट पर प्रत्येक बारहवे वर्ष गुरु के कुंभ राशि और सूर्य के मेष राशि पर स्थित होने पर लगता है। प्रत्येक छठवे वर्ष अर्द्धकुम्भ लगता है। Chinese Traveler Xuanzang  ने इस मेले को मोक्ष पर्व (Moksh Parv) कहा है। उसके अनुसार King Harshvardhan ने भी कुंभ महोत्सव पर हरिद्वार में Hari Ki Pauri पर यज्ञ  कर स्नान एवं दान का पुण्य लाभ प्राप्त किया था।

पिरान कलियर बाबा मेला



Roorkee से लगभग 8 किलोमीटर Kaliyar Village में प्रसिद्ध एक विशाल मेला लगता है। कलियर गांव में Hazarat Allauddin Ali Ahmad, Imamuddin तथ Kaliyar साहब की Grave है। यहां प्रतिवर्ष साबिर का उर्स मनाया जाता है। इस में दूर-दूर से श्रद्धालु आते है।

उत्तरायणी मेला



मकर संक्रांति के अवसर पर Kumaon-Garhwal क्षेत्र में कई River-Ghats एवं Temples में उत्तरायणी मेला लगता है। सन् 1921 में बागेश्वर Bageshwar में Saryu नदी के किनारे इसी मेले में उस समय प्रचलित Kuli-Begar प्रथा को समाप्त करने का संकल्प किया गया था। और कुली-बेगार संबंधित सभी कागजात सरयू नदी में बहा दिए गए थे।

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