Most Important Theories of Teaching in Language Teaching -CTET & TET EXAM 2018
By Kamakshi Sharma | UPTET | Oct 06, 2018
Main Theory of Language Teaching
भाषा शिक्षण के लिए मनोवैज्ञानिकों ने अनेक सिद्धांत दिये है इसका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है
1. अनुबंधन का सिद्धांत:-
भाषा विकास में अनुबंधन या साहचर्य का बहुत योगदान है शैशवावस्था में जब बच्चे शब्द सीखते हैं तो सीखना अमूर्त नहीं होता है बल्कि किसी मूर्त वस्तु से जोड़कर उन्हें शब्दों की जानकारी दी जाती है| उदाहरण के लिए कलम कहने के साथ अगर उन्हें कलम दिया जाता है और पानी या दूध के कहने पर उन्हें पानी या दूध दिखाया जाता है| इसी तरह बच्चे वस्तु या व्यक्ति से साहचर्य स्थापित करते हैं और अभ्यास हो जाने पर वस्तु या व्यक्ति की उपस्थिति पर संबंधित शब्द से उन्हें संबोधित करते हैं|
2. अनुकरण का सिद्धांत:-
वेलेंटाइन आदि अनेक मनोवैज्ञानिकों के द्वारा अनुकरण करने पर जो भाषा सीखने का अध्यन किया है इससे उनका मत है कि बालक अपने परिवारजनों साथियों की भाषा का अनुकरण करके सीखते हैं जैसे भाषा समाज या परिवार में बोली जाती है बच्चे उसी भाषा को सीखते हैं| यदि बालक के समाज या परिवार में प्रयुक्त भाषा में कोई दोष हो तो उस बालक की भाषा में भी उसी प्रकार का दोष देखने को मिलता है|
3. चॉम्स्की का भाषा अर्जित करने का सिद्धांत:-
बच्चे शब्दों की संख्या में कुछ निश्चित नियमों का अनुकरण करते हुए वाक्यों का निर्माण करना सीख जाते हैं| वाक्यों से शब्दों का निर्माण होता है| वाक्यों का निर्माण बच्चे जीन नियमों के अंतर्गत करते हैं उन्हें भाषा अर्जित सिद्धांत की संज्ञा दी गई है|
4. अभिप्रेरणा एवं रूचि का सिद्धांत:-
हिंदी पाठ्य सामग्री और उसकी शिक्षण प्रणालियों का चुनाव बच्चों की रुचि एवं उनकी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए बच्चों को भाषा सीखने हेतु यह बहुत आवश्यक है कि उनकी प्रेरणा और रुचि के लिए उन्हें प्रेरित किया जाना चाहिए|
5. क्रियाशीलता का सिद्धांत:-
बालकों को सीखने की क्रम में खुशी प्रदान करती है इसलिए अधिकतर शिक्षा शास्त्रियों ने भाषा शिक्षण सिद्धांत में इस सिद्धांत को अपनाए जाने की बहुत अधिक सिफारिश की है छात्रों से प्रश्न पूछना, साहित्यिक कार्यक्रम चलाना छात्रों को उसमें क्रियाशील रखना, पाठ का अभ्यास कराना, मौखिक व लिखित कार्य कराना, इत्यादि के कार्य किए जा सकते हैं|
6 . अभ्यास का सिद्धांत:-
अभ्यास एक भाषा कौशल है और इसका विकास अभ्यास पर ही निर्भर है| भाषा के कलात्मक एवं भाव दोनों पक्षों के लिए अभ्यास आवश्यक है |
7. जीवन समन्वयक का सिद्धांत:-
मनोवैज्ञानिकों के द्वारा यह सिद्ध किया गया है कि बच्चे उन विषय एवं क्रिया में अधिक रुचि लेते हैं जो उनके वास्तविक जीवन से संबंधित होती है इसलिए अध्यापक को यह समझना चाहिए कि वह बच्चों को पढ़ाने के लिए जिस सामग्री का उपयोग कर रहे हैं उसका संबंध उनके निजी जीवन से अवश्य होना चाहिए|
8. पाठ्य सामग्री का सिद्धांत:-
हिंदी भाषा शिक्षण के एक नहीं अनेक उद्देश्य है बच्चों को ज्ञान कौशल रुचि एवं अभिवृत्ति का विकास करना होता है प्रत्येक उद्देश्य की प्राप्ति एक निश्चित अनुपात में ही होती है अध्यापक शिक्षण से पूर्व पाठ के उद्देश्य और उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए विषय सामग्री का चयन बच्चों के स्तर के अनुकूल कराना चाहिए|
9. विभिन्नता का सिद्धांत:-
कक्षा के छात्रों में विभिन्नता होती है जैसे कोई छात्रों का सही उच्चरण कर लेता है और ऐसे ही किसी का लेख बहुत स्पष्ट होता है किसी का लेख स्पष्ट नहीं होता किसी का वाचन ठीक नहीं होता ऐसे किसी का लेख बहुत अशुद्ध होता है जैसे कोई बात नहीं कर पाता ,जैसे कोई मौन पाठ नहीं कर पाता तो कोई कई बार याद करने पर भी तथ्य को भूल जाता है इसलिए आपको इसलिए अध्यापक को इन सभी कठिनाइयों को ध्यान में रखकर इसीलिए अध्यापक को इन सभी विभिन्नता और कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए शिक्षण कार्य करना चाहिए
10 अनुपात एवं कर्म का सिद्धांत :-
भाषा शिक्षण का मूल उद्देश्य भाषा कौशलों में छात्रों को निपुण करना होता है| भाषा कौशल मुख्य रूप से चार प्रकार के होते हैं-
1 लेखन कौशल
2 वचन कौशल
3 पठन कौशल
4 श्रवण कौशल
यह सभी भाषा कौशल आपस में संबंधित है| इन सभी का उचित ज्ञान आवश्यक है|
11. बोलचाल का सिद्धांत:-
भाषा शिक्षण बोलचाल के माध्यम से होनी चाहिए| इससे भाषा सीखने में कम समय लगता है और इस प्रकार प्राप्त ज्ञान अधिक स्थाई रहता है साथ ही
इससे बालकों की सृजनात्मक शक्ति एवं अभिव्यक्ति कौशल में भी वृद्धि होती है|
12. चयन का सिद्धांत:-
हिंदी भाषा शिक्षण के लिए कब किस सिद्धांत का सहारा लिया जाए इसकी जानकारी अध्यापक को पूर्ण रूप से होनी चाहिए इसके लिए अध्यापक को बहुमुखी प्रयास करना चाहिए और जो रूप अधिक प्रभावकारी हो उसका चयन करना चाहिए जिसका छात्र पूर्ण रूप से लाभ उठा सकें|
13 .बालकेंद्रिता का सिद्धांत:-
भाषा- शिक्षण के समय इस बात पर पर्याप्त ध्यान देना चाहिए किस शिक्षण का केंद्र बालक है अध्यापक को अध्यापन के समय इतना आत्म विभोर नहीं होना चाहिए कि विस्मृत हो जाओ | भाषा शिक्षण में बालक के स्वभाव ,क्षमता, रुचि आदि का ध्यान रखा जाना चाहिए|
14 .शिक्षण सूत्रों का सिद्धांत:-
शिक्षण के कुछ सामान्य सूत्र हैं जिनके अनुसार शिक्षण कार्य करने से बच्चों को सीखने में सरलता सुगमता और स्थायित्व प्रदान होता है जैसे -सरल से कठिन की ओर, ज्ञात से अज्ञात की ओर, विशिष्ट से सामान्य की ओर, आगमन से निगमन की ओर, विश्लेषण से संश्लेषण की ओर आदि
15.साहचर्य का सिद्धांत:-
बच्चे दूसरों को सुनकर ही बोलना सीखते हैं किंतु इस प्रकार की क्रिया के लिए पर्याप्त संख्या में उसे भाषा के बोलने का साहचर्य मिलना बहुत आवश्यक होता है जैसे जब मां बच्चे को माँ या मम्मी कहने के साथ पहचानना और समझाना बताएगी समझने के बाद में मां के उच्चारण के साथ बालक खुद मां की तरफ देखेगा|
16. आवर्ती का सिद्धांत:-
मनोवैज्ञानिक प्रयोगों से यह सिद्ध हो चुका है की भाषा सीखने में आवर्ती का बहुत महत्व है सीखी हुई बात को जितना अधिक दोहराया जाएगा वह उतने ही अधिक देर तक याद रहेगी|
17. परिपक्वता का सिद्धांत:-
परिपक्वता का तात्पर्य है कि भाषा अवयवों एवं स्तरों पर नियंत्रण होना चाहिए बोलने में जीभ , तालु ,गला होठ , दाँत तथा स्वर यंत्र जिम्मेदार होते हैं यदि इनमें किसी भी प्रकार की कमजोरी या कमी होती है तो इससे हमारी वाणी प्रभावित होती है इसीलिए सभी अंगों में जब परिपक्वता होती है तो भाषा पर नियंत्रण होता है|
other related links:-
Education Science : Introduction to Concepts of Learning For UTET Exam 2018
Top 50 Important Gk Questions for Competitive Exam in Hindi
Indian Economy GK questions answers for SSC Exam 2018