China experiment for math education
चीन विश्व का सबसे तेजी से आधुनिक प्रौद्योगिकी में अपने कर्तव्यों से दुनिया में पहचान बना रहा। हल ही में चीन ने गणित (मैथ्स) को सीखने के लिए नए तरीके की खोज की है जो दुनिया में खूब चर्चा में है व दुनिया के अधिकांश देशो में प्रसिद्धि बटोर रहा है।
गणित (मैथ्स ) जो दुनिया के अधिकतर छात्रों के लिए सर दर्द का विषय बना रहता है चीन ने इस खोज से उन छात्रों के लिए एक सौगात उपलब्ध करने की कोशिश की है। चीन की मैथ्स को सिखाने की यह नई विधि दुनिया के अनेक विश्वविद्यालयों में खूब सराहा जा रहा है।
चीन की मैथ्स को सीखने की यह नै विधि शंघाई टेक्निक्स के नाम से दुनिया में खूब हिट हो रही है।
अब सवाल ये उठता है की आखिर चीन की यह मैथ्स को सीखने की यह नई विधि आखिर है क्या शंघाई टेक्निक्स के नाम से प्रसिद्ध इस इस विधि में अध्यापक विद्यार्थियों को पहले गणित के सभी कांसेप्ट बताता है फिर उन कॉन्सेप्ट को विद्यार्थियों से प्रत्येक सवालों में प्रयोग करने के तरीके बताता है। जिससे सभी छात्रों के कॉन्सेप्ट क्लीयर हो जाये व सभी छात्र उस विधि को सही ढंग से समझ लेते है। ताकि छात्र को कांसेप्ट समझने के बाद उसका सही रूप से स्तेमाल करना आ जाये। जब हर छात्र के कांसेप्ट क्लीयर हो जाते है तभी अध्यापक दूसरे अभ्यास (chapter ) को शुरू करते है। चीन की इस नई अदभूत तकनिकी मैथ्स सीखने की खोज को दुनिया के अनेक विद्यालयों में अपनाया जा रहा है। जिससे यह विधि खूब चर्चा में बानी हुई है। जिससे भारत व उसके पडोसी देशों में भी इस विधि को अपनाये जाने की बात हो रही है।
SHANGHAI TECHNIQUE – शंघाई टेक्निक
शंघाई टेक्निक कुछ साल पूर्व प्रकाश में आई उस समय चीन के एक शहर के 15 साल के विद्यार्थी ने अंतरराष्ट्रीय छात्र मूल्यांकन परीक्षा (पिसा) के त्रैवार्षिक कार्यक्रम में दुनिया के अन्य हिस्से देशों के छात्रों के मुकाबले अच्छा प्रदर्शन किया था ।
भारत के हैदराबाद के शिक्षाविदों का कहना है कि इसमें थ्योरी theory में समानता पर जोर दिया जाता है। शिक्षाविद चुक्का रमैया ने बताया, ‘अगर इस विधि में हर एक की समझ में आने के बाद ही अगले चैप्टर की पढ़ाई होती है तो इसका मतलब है यह समानता को बढ़ावा देती है। यह भारत में यह 16 छात्रों से कम वाले क्लास के लिए उपयुक्त हो सकती है।’
भारत कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि हालांकि इससे गरीब छात्रों के लिए फायदे मन्द होगा। लेकिन स्थानीय परिस्थितियों को देखते हुए इसे अपनाया नहीं जा सकता है। एक शैक्षिक संस्थान के मालिक रामअब्राहम ने बताया, ‘हमारे छात्र विभिन्न सांस्कृतिक एवं क्षेत्रीय पृष्ठभूमि के होते हैं। इस संदर्भ में कोई एक खास दिशा को अपनाना संभव नहीं है।’
वही कुछ अन्य लोगों का मानना है कि यह विधि उतनी सही नहीं है क्योंकि इससे छात्रों एवं शिक्षकों पर अतिरिक्त दबाव बढ़ेगा । उनका कहना है कि वाकई में पीएसए(PACA ) टेस्ट का परिणाम उतना प्रभावी नहीं है।
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