banner ad

Uttarkhand GK In Hindi: उत्तराखंड के प्रमुख पारम्परिक लोक नृत्य एवं नृत्य कला

By Kamakshi Sharma | General knowledge | Oct 09, 2018
उत्तराखण्ड की लोक धुनें भी अन्य प्रदेशों से भिन्न है। यहाँ के बाद्य यन्त्रों में नगाड़ा, ढोल, दमुआ, रणसिंग, भेरी, हुड़का, बीन, डौंरा, कुरूली, अलगाजा प्रमुख है। यहाँ के लोक गीतों में न्योली, जोड़, झोड़ा, छपेली, बैर व फाग प्रमुख होते हैं। इन गीतों की रचना आम जनता द्वारा की जाती है। इसलिए इनका कोई एक लेखक नहीं होता है। यहां प्रचलित लोक कथाएँ भी स्थानीय परिवेश पर आधारित है। लोक कथाओं में लोक विश्वासों का चित्रण, लोक जीवन के दुःख दर्द का समावेश होता है। भारतीय साहित्य में लोक साहित्य सर्वमान्य है। लोक साहित्य मौखिक साहित्य होता है। इस प्रकार का मौखिक साहित्य उत्तराखण्ड में लोक गाथा के रूप में काफी है। प्राचीन समय में मनोरंजन के साधन नहीं थे। लाकगायक रात भर ग्रामवासियों को लोक गाथाएं सुनाते थे। इसमें मालसाई, रमैल, जागर आदि प्रचलित है। अभी गांवों में रात्रि में लगने वाले जागर में लोक गाथाएं सुनने को मिलती है। यहां के लोक साहित्य में लोकोक्तियां, मुहावरे तथा पहेलियां (आंण) आज भी प्रचलन में है। उत्तराखण्ड का छोलिया नृत्य काफी प्रसिद्ध है। इस नृत्य में नृतक लबी-लम्बी तलवारें व गेंडे की खाल से बनी ढाल लिए युद्ध करते है। यह युद्ध नगाड़े की चोट व रणसिंह के साथ होता है। इससे लगता है यह राजाओं के ऐतिहासिक युद्ध का प्रतीक है। कुछ क्षेत्रों में छोलिया नृत्य ढोल के साथ श्रृंगारिक रूप से होता है। छोलिया नृत्य में पुरूष भागीदारी होती है। कुमाऊँ तथा गढ़वाल में झुमैला तथा झोड़ा नृत्य होता है। झौड़ा नृत्य में महिलाएँ व पुरूष बहुत बड़े समूह में गोल घेरे में हाथ पकड़कर गाते हुए नृत्य करते है। विभिन्न अंचलों में झोड़ें में लय व ताल में अन्तर देखने को मिलता है। नृत्यों में सर्प नृत्य, पाण्डव नृत्य, जौनसारी, चांचरी भी प्रमुख हैगढ़वाल का प्रागैतिहासिक काल से भारतीय संस्कृति में अविस्मरणीय स्थान रहा है। यहां के जनजीवन में किसी न किसी रूप में सम्पूर्ण भारत के दर्शन सुलभ है। इस स्वस्थ भावना को जानने के लिए यहां के लोक नृत्य पवित्र साधन है। यहां के जनवासी अनेक अवसरों पर विविध प्रकार के लोक नृत्य का आनन्द उठाते हैं।

झोड़ा नृत्य



झोड़ा नृत्य  कुमाऊं क्षेत्र में माघ के चांदनी रात्रि में किया जाने वाला नृत्य है| यह नृत्य यहा  के स्त्री-पुरुषों का श्रंगारिक नृत्य है। इस  नृत्य में मुख्य गायक वृत्त के बीच में हुडकी बजाता हुआ नृत्य करता है। इस नृत्य को यहा बहुत ही आकर्षक नृत्य है, जो गढ़वाली नृत्य चांचरी के तरह पूरी रात भर किया जाता है।

 छोलिया नृत्य



छोलिया नृत्य कुमाऊं क्षेत्र का एक प्रसिद्ध युद्ध नृत्य है। जिसे शादी या धार्मिक आयोजन में ढाल व तलवार के साथ प्रयोग  किया जाता है।

 हारुल नृत्य



हारुल नृत्य जौनसारी जनजातियों  द्वारा  आयोजित  किया जाने वाला नृत्य  है।  इस नृत्य के समय अनिवार्य रुप से जो वाद्ययंत्र  बजाया जाता है। उसे रमतुला नामक वाद्ययंत्र कहा जाता  है |

 बुड़ियात लोकनृत्य



यह  नृत्य जौनसारी समाज  में आयोजित  किया जाने वाला नृत्य  है। जौनसारी समाज  में यह नृत्य जन्मोत्सव , शादी-विवाह  एवं हर्षोल्लास के अन्य अवसरों पर किया जाता है।

 पण्डवार्त नृत्य



यह गढ़वाल क्षेत्र में पांडवों के जीवन प्रसंगों पर आधारित नवरात्रि में 9 दिन चलने वाले इस नृत्य/नाट्य आयोजन में विभिन्न प्रसंगों के 20 लोकनाट्य होते है।

 चौफला नृत्य



राज्य के गढ़वाल क्षेत्र में स्त्री-पुरुषों द्वारा एक साथ अलग-अलग टोली बनाकर किया जाने वाला यह श्रृंगार भाव प्रधान नृत्य है।

तांदी नृत्य



गढ़वाल के उत्तरकाशी और जौनपुर (टिहरी)   में यह नृत्य किसी विशेष खुशी के अवसर पर एवं माघ महीने में किया जाता है

 झुमैलो नृत्य



तात्कालिक प्रसंगों   पर आधारित गढ़वाल क्षेत्र का यह गायन नृत्य झूम-झूम कर नवविवाहित कन्याओं द्वारा किया जाता है।

 चांचरी नृत्य



यह गढ़वाल क्षेत्र में माघ माह की चांदनी रात में स्त्री-पुरुषों द्वारा किए जाने वाला एक शृंगारिक नृत्य है।

 छोपती नृत्य



यह गढ़वाल क्षेत्र का नृत्य प्रेम एवं रूप की भावना से युक्त स्त्री-पुरुष का एक संयुक्त नृत्य संवाद प्रधान होता है।

 घुघती नृत्य



यह गढ़वाल क्षेत्र का नृत्य छोटे-छोटे बालक-बालिकाओं द्वारा मनोरंजन के लिए किया जाता है।

भैलो-भैलो नृत्य



यह  नृत्य दीपावली के दिन भैला बाँधकर किया जाता है।

 जागर नृत्य



यह कुमाऊं एवं गढ़वाल क्षेत्र में पौराणिक गाथाओं पर आधारित नृत्य हैं, य

थडिया नृत्य



गढ़वाल क्षेत्र में बसंत पंचमी  से बिखोत तक विवाहित लड़कियों द्वारा घर के थाड (आगन/चौक) में  थडिया गीत गाए जाते है और नृत्य किए जाते है। यह नृत्य प्राय: विवाहित लड़कियों द्वारा किया जाता है, जो पहली बार मायके जाती है ।

 सरौं नृत्य



यह गढ़वाल क्षेत्र का ढ़ोल  के साथ किए जाने वाला युद्ध गीत नृत्य है। यह नृत्य टिहरी  व उत्तरकाशी में प्रचलित है।

 पौणा नृत्य



यह भोटिया जनजाति  का नृत्य गीत है। यह सरौं नृत्य की ही एक शैली  है। दोनों नृत्य विवाह के अवसर पर मनोरंजन के लिए किए जाते है।

other related links:




  1. Top 50 Indian economics gk question in hindi | gk in hindi

  2. Environment Science GK Quiz – SSC Combined Graduate Level – 2018

  3. Hindi Grammer:Vilom Shabd in Hindi |State TET 2018



 
banner ad

Share this Post

(इस पोस्ट को अपने दोस्तों के साथ शेयर करना ना भूले)

Posts in Other Categories

Get Latest Update(like G.K, Latest Job, Exam Alert, Study Material, Previous year papers etc) on your Email and Whatsapp
×
Subscribe now

for Latest Updates

Articles, Jobs, MCQ and many more!